Ucchista Ganapati Mantra : उच्छिष्ट गणपति मंत्र एक अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावी मंत्र है जो भगवान गणेश के एक विशेष रूप की आराधना करता है। यह मंत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति बल्कि भौतिक समृद्धि भी प्रदान करता है।
इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और उसकी सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
उच्छिष्ट गणपति मंत्र का नियमित जाप करने से मन की शांति, आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प की प्राप्ति होती है ।
यह मंत्र विशेष रूप से कार्य क्षेत्र में सफलता, धन लाभ और शत्रुओं पर विजय पाने में सहायक है । इसके अलावा, यह मंत्र नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है ।
अगर आप अपने जीवन में परिवर्तन लाना चाहते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहते हैं, तो उच्छिष्ट गणपति मंत्र का जाप आपके लिए एक अमूल्य उपहार हो सकता है।
इस मंत्र की शक्ति का अनुभव करके आप अपने जीवन को नई दिशा और गति दे सकते हैं।
Ucchista Ganapati Mantra उच्छिष्ट गणपति ध्यान का स्वरूप
उच्छिष्ट गणपति ध्यान का स्वरूप इस प्रकार कहा गया है –
“रक्तमूर्ति गणेशं च सर्वाभरणभूषितम् ।
रक्तवस्त्रं त्रिनेत्रं च रक्त पद्मासने स्थितम् ।।
चतुर्भुजं महाकायं द्विदन्तं सस्मिताननम् ।
इष्टं च दक्षिणे हस्ते दन्तं च तदधः करे ॥
पाशांकुशौ च हस्ताभ्यां जटामण्डल वेष्टितम् ।
ललाटे चन्द्ररेखाढ्यं सर्वालङ्कार भूषितम् ॥”
भावार्थ- ‘उच्छिष्ट गणेश रक्त वर्ण हैं । वे सब प्रकार के आभूषणों को धारण किये हुए हैं ! उनके वस्त्र, पहिनावा तथा नेत्र लाल वर्ण के हैं । वे रक्त-कमल के आसन पर विराजित हैं।
उनके चार हाथ हैं, शरीरं बड़ा है, दो दाँत हैं तथा मुख पर हास्य की रेखा सदैव विद्यमान रहती है । उनके दाँई ओर के ऊपरी हाथ में वर मुद्रा है तथा नीचे का हाथ एक दांत को पकड़े हुए है ।
बाँई ओर के ऊपरी हाथ में पाश है तथा नीचे के हाथ में अंकुश है। उनके मस्तक पर जटा मण्डल तथा श्रर्द्धचन्द्र सुशोभित है ।’
Ucchista Ganapati Mantra Puja Vidhi : पूजन विधि
ध्यानोपरान्त मूल मन्त्र से ग्रर्च्य स्थापित करके, अर्ध्य के जल से पूजा के उपकरण द्रव्य तथा अपने शरीर पर छींटे देने चाहिए।
फिर दूसरी बार देवता का ध्यान करके उन्हें अष्टदल पद्म में स्थापित करे। फिर पंचोपचार से देवता की पूजा करके अष्टदल पद्म के पूर्वादि पत्र में
ॐ वक्रतुण्डाय स्वाहा,
ॐ एकदन्ताय स्वाहा,
ॐ लम्बोदराय स्वाहा,
ॐ विकटाय स्वाहा,
ॐ विघ्नेशाय स्वाहा,
ॐ गजवक्त्राय स्वाहा,
ॐ विनायकाय स्वाहा,
ॐ गणपतये स्वाहा,
तथा मध्य में “ॐ हस्तिमुखाय स्वाहा”
इस मन्त्र से देवताओं की पूजा करे । फिर तीन बार मूल देवता की पूजा करके, यथा शक्ति मूल मन्त्र का जप करते हुए जप समर्पण करे ।
Ucchista Ganapati Mantra Bali Vidhan : बलि विधान
इसके पश्चात् –
“ॐ उच्छिष्टगणशाय महाकालाय एष बलि र्नमः”
इस मन्त्र से बलि देकर, आचमनीयादि प्रदान करे। ( यहाँ पर बलि का अर्थ – एक फल – अपनी योग्यता के अनुसार फल अर्पित करे ।) विशेष फल की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को “ह्राँ ह्रीं हैं ह्र फट् स्वाहा”
इस मन्त्र से पुनर्वार बलि प्रदान करनी चाहिए। फिर एक पुष्प दक्षिण दिशा में फेंक कर ‘क्षमस्व’ कहते हुए विसर्जन करना चाहिए ।
Ucchista Ganapati Mantra Punacharan Vidhi पुरश्चररण विधि
इस मन्त्र के पुरश्चरण में कुल सोलह सहस्र (१६,००० हज़ार बार) को संख्या में मन्त्र का जप करना चाहिए।
कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से आरम्भ करके शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तक स्त्री (पत्नी) के सहयोग से (साथ लेकर) प्रति दिन एक सहस्र की संख्या (१००० हज़ार बार) में जप करना चाहिए ।देवता को प्रतिदिन मधु (शहद) से स्नान कराके गुड़-पायस का नैवेद्य प्रदान करना उचित है ।
भोजनोपरान्त आचमन किए बिना ही उच्छिष्ट (जूठे) मुख से देवता का जप करना चाहिए ।
श्वेत आक अथवा लाल चन्दन द्वारा अंगुष्ठ प्रमाण उच्छिष्ट गणपति को प्रतिमूर्ति बनाकर, उसमें प्राण प्रतिष्ठा पूर्वक, ब्राह्मण, अग्नि तथा गुरु के समीप सोलह सहस्र की संख्या में मन्त्र का जप करने पर ही मन्त्र की सिद्धि होती है ।
तन्त्रान्तर में लिखा है कि इस देवता का उच्छिष्ट मुख (जूठे मुंह) से जप और पूजादि कार्य करने से मन्त्र की सिद्धि होती है । कुछ तन्त्र ग्रंथों के अनुसार इस देवता की अराधना में करने की आवश्यकता ही नहीं है, केवल मानसिक जप ही करना पूजा चाहिए तथा कुछ तन्त्रों के मतानुसार कराङ्गे न्यास नहीं करना चाहिए और ‘मैं स्वयं ही गणेश स्वरूप हूँ, इस प्रकार चिन्तन करते हुए जप करना चाहिए ।
इस सम्बन्ध में गर्ग मुनि का यह कहना है कि निर्जन वन में बैठकर लाल चन्दन से लिप्त ताम्बूल (पान) को चबाते हुए जप करना चाहिए ।
अन्य तन्त्र के अनुसार साधक को सब प्रकार के आभूषणों (गहनों) से विभूषित होकर जप करना चाहिए। एक अन्य तन्त्र के मतानुसार इस देवता की पूजा में लड्डु खाते हुए जप करना चाहिए।
भृगु मुनि के मत से उच्छिष्ट गणपति की अराधना में फल भक्षण करते हुए जप करना चाहिए तथा विभीषण के मतानुसार नैवेद्य का भोजन करना आवश्यक है ।
Ucchista Ganapati Mantra : उच्छिष्ट गणेश का एकोनविंशति वर्ण मन्त्र
“ॐ नमः उच्छिष्ट गणेशाय हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ”।
Ucchista Ganapati Mantra Kamya Prayog : विशेष काम्य प्रयोग उच्छिष्ट गणपति के
साधना सिद्धि के बाद काम्य प्रयोग किया जाता है जैसे कि, उच्छिष्ट गणपति के विशेष प्रयोग इस प्रकार कहे गये हैं –
(१) राजद्वार, वन, सभा, गोत्र, समाज, विवाद, व्यवहार, युद्ध, शत्रु-संकट, द्यूत-क्रीड़ा, विपत्तिकाल, ग्राम-दाह, चौर-भप तथा सिंह व्याघ्रादि का भय उपस्थित होने पर इस देवता के स्मरण से समस्त भयों तथा विघ्नों का नाश हो जाता है ।
(२) मूल मन्त्र द्वारा अपामार्ग की समिधा को एक सौ आठ बार अभिमन्त्रित करके होम करने पर साधक को सौभाग्य की प्राप्ति होती है ।
(३) बन्दर की हड्डी से बनी कील को मूल मन्त्र से अभिमन्त्रित करके जिस मनुष्य के घर में गाढ़ दिया जाय, उसका उच्चाटन होता है ।
(४) उपर्युक्त प्रकार की कील को यदि किसी बाजार में गाढ़ दिया जाए तो वहाँ क्रय-विक्रय का व्यापार अवरुद्ध हो जाता है ।
(५) उपर्युक्त प्रकार की कील को यदि कलाल (शराब बनाने और बेचने वाले) के घर में गाढ़ दिया जाए तो उसके घर में रखी हुई शराब बिगड़ जाती है ।
(६) उपर्युक्त कील को यदि किसी वेश्या के घर में गाढ़ दिया जाए तो उसका कोई आदर नहीं करता ।
(७) उपर्युक्त कील को यदि किसी क्वारी कन्या के घर में गाढ़ दिया जाएं तो उसका विवाह नहीं होता ।
(८) मनुष्य की हड्डी से बनी कील को मूल मन्त्र से अभिमन्त्रित करके किसी मनुष्य के घर में गाढ़ दिया जाए तो उसकी मृत्यु हो जाती है । कील उखाड़ लेने पर दोष की शान्ति हो जाती है ।
(९) जिस साध्य व्यक्ति का नाम लेकर मूलमन्त्र का एक सहस्र की संख्या में जप किया जाय, वह वशीभूत होता है ।
(१०) विवाहार्थी मनुष्य यदि पाँच सहस्र की संख्या में इस मन्त्र का जप करे तो उसे श्रेष्ठ स्त्री की प्राप्ति होती है ।
(११) इस मन्त्र द्वारा दस सहस्र की सख्या में होम करके अभिलाषित राजा को वशीभूत किया जा सकता है ।
(१२) उच्छिष्ट गणेश का मन्त्र एक लाख की संख्या में जपने पर राजा, दो लाख की संख्या में जपने पर राजकुल तथा दस लाख की संख्या में जपने पर राजा के समस्त कर्मचारी आदि वशीभूत होते हैं।
(१३) इस मन्त्र द्वारा एक करोड़ की संख्या में होम करने पर अणिमादिक अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति होती है !
(१४) इस मन्त्र को भोजपत्र पर लिखकर कण्ठ अथवा मस्तक पर धारण करने से सौभाग्य की वृद्धि तथा सर्वत्र रक्षा होती है ।
गणेश उत्सव के शुभ अवसर पर आप सभी को मेरी शुभ कामनाये ।
गणपति बाप्पा मोरिया ॥
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